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Wednesday 10 January 2018

बुद्धि शून्यों के बादशाह - बेगम : राजीव रंजन और सविता सिन्हा

कमला नगर, आगरा में बाबू जी साहब व माँ जी  ( Mrs & Mr B P Sahay ) आर्यसमाजी विधि से   हवन करते हुये 

कोई भी प्राणी जो मननशील हो मनुष्य कहलाता है। बुद्धि-ज्ञान-विवेक के साथ मनन करना ही मनुष्यता है। परंतु जब मनन के स्थान पर थोथे सेंटिमेंट्स हावी हों तब ऐसे लोगों को दाराब फ़ारूक़ी साहब( जो पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं) ने ‘एजुकेटेड इल्लिट्रेट’:  ‘पढ़ा-लिखा गंवार’ कहा है। ज्वलंत उदाहरण के रूप में  राजीव रंजन ( सुपुत्र बी पी सहाय साहब http://puraniyaden2908.blogspot.in/2017/12/blog-post.htmlऔर सविता सिन्हा ( सुपुत्री डॉ एन के सिन्हा साहब       http://puraniyaden2908.blogspot.in/2017/11/blog-post.html ) प्रस्तुत हैं।




इतने विद्वान व समझदार पिताओं के पुत्र - पुत्री बेहद शर्मनाक तरीके से ‘एजुकेटेड इल्लिट्रेट’के रूप में खुद को पेश किए हुये हैं बताते हुये दुख व अफसोस तो होता है लेकिन सच्चाई सामने लाने के लिए ऐसा किया जाना मजबूरी और ज़रूरी है।

चाचा - चाची और भुआ के साथ हैं :
1995-96 के दौरान उनकी पुत्रियों के साथ उनके चाचा - चाची और भूआओं द्वारा द्वारा किए दुर्व्यवहार को देखते हुये सुमन ( प्रकाश कुमार ) के विवाह के समय जब बाबूजी साहब, माँ जी व ये दोनों महानुभाव एक साथ बैठे थे तब मैंने बाबूजी साहब से कहा था कि, ' भाई साहब को समझाइए कि, उनके चाचा - चाची और भुआएं जिस प्रकार उनकी बेटियों को प्रताड़ित करते हैं उनका विरोध और अपने बच्चों का बचाव करें । ' इस पर बाकी तीनों  तो मौन साध लिए लेकिन बादशाह साहब ने हुक्म फरमाया कि, वह अपने चाचा - चाची और भुआ के साथ हैं। और यह दिखा दिया जब उनके जिस चाचा ने उनके पिताजी को जिस दिन  जलील किया था उसी दिन उनका सत्कार करके। तब बाबूजी साहब को सार्वजनिक रूप से उनसे कहना पड़ा था - " You are not Reliable to me, You are not faithfull to me " ।इसी शख्स की पत्नी को इनकी पत्नी ' छोटी माँ ' के रूप में संबोधित करती और उनका अनुसरण करती हैं। इनके ही बेटे को लेकर हमारे घर एकमात्र बार आईं थीं आगरा में।
उनकी नहीं तो किसकी मानें  ? :
बाबूजी साहब ने बताया था कि, आलोक कुमार ने अपनी माताजी को ठग कर मकान पर कब्जा करके उसे बेचने का उपक्रम किया था जिसको उन्होने विफल कर दिया था। लेकिन अफसोस कि, उनके बड़े सुपुत्र साहब जिनको वही आलोक गया ले जाकर दान - पुण्य करा लाये थे ( जबकि मंदिर और पुजारी को दान देना उनके लिए घातक है उनको पहले ही बता रखा था ) जिसके बाद वह गंभीर बीमार हुये और अस्पताल मे भी एडमिट रहना पड़ा ।उनकी सहयोगी थीं बेगम साहिबा की छोटी माँ जिनके टोटके - टोने से बादशाह साहब उसी ICUऔर उसी बेड पर एडमिट रहे जिस पर उनके पिता को जलील करने वाले चाचा रहे थे।  जब 2015 में उनको याद दिलाया तो कहते हैं " उनकी नहीं तो किसकी मानें ? " कितनी शानदार बात हुई कि, जो अपनी माँ का सगा नहीं था वह बादशाह साहब की निगाह में उनका  सगा हुआ। तभी तो उनकी आँख की पुतली घूमते ही अपने पिताजी को यह कह कर अभी आ रहे हैं फिर आलोक साहब के साथ बाहर चले गए बिना उनको बताए हुये ही। यह इनके साथ सगेपन का ही दीवानापन था कि इनके घर की चौकीदारी करने दोनों पति-पत्नी अपनी दोनों छोटी - छोटी पुत्रियों को अकेला छोड़ कर चले गए थे। इनकी अपनी सबसे  बड़ी भतीज - बहू के समक्ष पूर्णत : नग्न उपस्थित होना, बाढ़ पीड़ितों की सहायता सामाग्री हड़प लेना  इन आलोक साहब के  चरित्र की विशेषता है। इनके द्वारा इन बादशाह साहब की बड़ी पुत्री को लात  से धकेल देना भी इन दोनों को नागवार नहीं लगा जो उनके प्रति इन दोनों के दीवानेपन की निंदनीय  पराकाष्ठा है। हाथ - कंगन को आरसी क्या ? पढे - लिखे को फारसी क्या ?? और तो और चूंकि आलोक ने पहले अपनी छोटी बेटी का विवाह किया था इसलिए बादशाह साहब ने भी उसी प्रक्रिया को दोहराया। 
2012 में क्या हुआ था ? : 
यों तो समय - समय पर उन लोगों को उनके चाचाओं - चाचियों के बारे में आगाह करते रहे थे , परंतु 11मई 2012 को बादशाह साहब को उनकी आरा वाली चाची का नामोल्लेख करके स्पष्ट कर दिया था कि वह आपके और हमारे बीच दरार डाल कर रिश्ता तुड़वाना चाहती हैं।उनका स्पष्ट समर्थन अपनी चाची के साथ रहा। 2009 में उनकी बेगम साहिबा भी अपनी इस खोटी चचिया सास का समर्थन कर चुकी थीं। वस्तुतः 2009 और 2012 में बादशाह साहब अपनी बेगम साहिबा से अपनी बहन को वहाँ आने से मना करवा चुके थे किन्तु उनकी बहन ज़िद्द करके वहाँ ज़बरदस्ती गईं। अतः भविष्य में आने से रोकने के लिए बादशाह साहब ने मेरे पुत्र को अनर्गल बातें सुना डालीं स्व्भाविक रूप से उसका प्रतीकार करना पड़ा जो उनको नागवार लगा। 2000 में उनके भाई सुमन पहले ही अपनी बहन को कह चुके थे कि जब दादी और माँ अपने मायके नहीं जाती हैं तो तुम क्यों आती हो ? उनसे तो तभी से कट - आफ था। 
रिटर्न टिकट कांड :    
''2012 में क्या हुआ था ?" यही वाक्य आधार बना कर 2015 में बादशाह साहब ने अपनी बेगम साहिबा के जरिये अपनी बहन को वहाँ उनकी बीमारी में देखने आने से रोकने के लिए सीधे मुझको कहलवाया कि, " हमें उनकी जरूरत नहीं है " और यह भी कि, " अपने आने की तारीख  और गाड़ी बताएं जिससे रिटर्न टिकट तैयार रखें।" उनके साथ उनकी छोटी माँ ( वही जो SGPGI, लखनऊ में उनकी ही बेटियों की खिलाफत करके गई थी,विशेष रूप से छोटी की ज़्यादा  ) का बेटा ( वही जिसने देवघर में 01 सितंबर 2012 को उनकी नन्द के समक्ष कहा था बहन-भाई, भतीजा- भतीजी कुछ नहीं होते हैं वह सब को काट - पीट डालेगा , उसी को साथ लेकर 1995 में आगरा पहुंची थीं )  24 घंटे उनके साथ है और किसी की उनको ज़रूरत नहीं है। 

स्वभाविक रूप से हमने जाने - आने (रिटर्न टिकट तो सुविधा शुरू होने से लगातार हम खुद ही ले कर चलते थे , बेगम साहिबा के मोहताज नहीं थे ) रद्द - केनसिल करा दिये। बेगम साहिबा की बहनों के जरिये उन लोगों को समझाने का प्रयास किया जो व्यर्थ गया क्योंकि सभी को पहले से ही गुमराह किया हुआ था। लेकिन बादशाह साहब की बहन अपने भाई को देखने को उत्कंठित थीं अतः 22 अप्रैल 2015 को यहाँ से चल कर 23 को पहुंचे और 25 की प्रातः लौट लिए। परंतु जब लखनऊ में ट्रेन में बैठ चुके थे बेगम साहिबा ने अपनी नन्द को फोन करके न आने को फिर कहा । लेकिन ट्रेन से उतर कर घर लौटना परले  दरजे  की बेवकूफी होती अतः बेइज्जती सहते हुये ही एक बहन को उसके भाई से मिलवाया जा सका।  वहाँ उनकी बड़ी बेटी को समझाने का प्रयास किया कि, अपने पिता श्री को उनके चाचा - चाचियों के षड्यंत्र से बचाओ तो बादशाह साहब ने अपनी बेटी को घुड़क कर हटा दिया और उन बच्चों को मेरे ही विरुद्ध भड़का दिया। उनको उस समय यह भी आपत्ति थी कि पुलिस कालोनी,पटना  की एक डाइरेक्टर को ( जिनको वह अंतड़ीफ़ाड़ कहते हैं  ) और गोंमतीनगर, लखनऊ वाली उनकी फुफेरी साली साहिबा ( जिनको वह लड़ाका कहते हैं ) को मैंने फेसबुक पर क्यों जोड़ रखा है ?  
यही वजह थी कि, उनकी छोटी बेटी की शादी में चार ट्रिप करने और पाँच ट्रिप का तीन जनों का पैसा खर्च करने के बावजूद हम  दो जन शामिल नहीं हो सके जैसा वे दोनों चाहते थे उनकी मनोकामना पूर्ण की। 08 दिसंबर 2016 को जब अपनी श्रीमती जी को वापिस लाने गए थे तब बादशाह साहब ने स्पष्ट कहा कि, उनको अपनी बहन की कोई परवाह नहीं है( इसी वजह से दिसंबर 2010  मे उनकी बहन के ज़ीने से गिर जाने पर सूचना देने के बावजूद उन दोनों ने हाल - चाल तक न पूछा था ), दोबारा पूछा तब फिर वही दोहराया अतः उन दोनों के समक्ष मैंने भी स्पष्ट कर दिया था कि, अब सब खुद ही  सुन लिया है तो  अपने भाई - भाभी की झूठी तारीफ न करना । और इसके बाद उन लोगों से कट आफ करना मजबूरी ही हो गया जैसा कि उनके छोटी बाप ने 2013 में SGPGI,लखनऊ में कहा था उनकी परवाह न करो, उनकी छोटी माँ ने कहा था अपनी भतीजियों का ख्याल न करो। निश्चित रूप से उन लोगों ने बादशाह - बेगम को हम लोगों के खिलाफ भड़काया होगा और वे भड़क भी गए। चार वर्ष बाद अब हमारे पास भी कोई विकल्प नहीं है ।  मुझे फेसबुक पर नहीं जोड़ा गया था जबकि बादशाह साहब के चाचा के बेटे-दामाद -पुत्रवधू सबको फेसबुक पर जोड़ रखा था जिसमें उनकी आरा वाली चाची (जिसने उनकी बड़ी बेटी का दिमाग जाम करके हानि पहुंचाई ) के परिवारीजन भी हैं और उनके नंगू चाचा का वह पुत्र भी शामिल है जिसने उनकी बेगम साहिबा को अपनी जांघ पर बैठने का आव्हान किया था । चूंकि मैं उन सबका विरोध करता हूँ इसीलिए मुझे नहीं जोड़ा गया था। फिर भी मैंने निम्नोक्त पोस्ट को लाईक कर दिया था जिसे ज़रूरत से ज़्यादा  नफरत के चलते  डिलीट करके अपनी पोस्ट हाईड कर डाली। : 
नि
उनको हमारी क्या ज़रूरत होती जो अपने माता - पिता के नहीं अपने चाचाओं- चाचियों के सगे ठहरे ?चाचा का दामाद एक माह भी रह जाये थोड़ा है। अपने माता- पिता के दामाद को चार घंटे के ठहराव पर भी चाचा - चाची विरुदावली सुना कर प्रतिताड़ित करते रहे।  तब हमें भी क्या फिक्र हमें उनकी क्या जारूरत ? मुश्किल तो उनकी बहन / नन्द की है जो अपने भटके,जिद्दी,क्रूर-कपटी,अहंकारी   भाई - भाभी की फिक्रमंद रहती हैं।उनकी बड़ी भतीजी की शादी का गिफ्ट भेजना उनका ही दायित्व है , मैं 31 दिसंबर 2017 तक भेज देना चाहता था । पटना जाकर भी उन लोगों के घर मैं अब नहीं जा सकता जैसा कि, 26 सितंबर 2012 को दिन भर गोलघर पर बिता कर उनके घर के सामने जाकर भी उनके घर नहीं गया था और बाहर से ही उनसे मिले बगैर उनकी बहन को बुला लाया था। उनका घमंड,हमसे चिढ़ और घोर नफरत की इंतिहा देखते हुये  हम तो सिर्फ यही कहेंगे : 





"रिटर्न टिकट कांड " की चतुर्थ वर्षगांठ पर इस भंडा - फोड़ गिफ्ट से बेहतर उपहार और क्या हो सकता था ? 

बादशाह - ए आजम  राजीव रंजन के चाचाओं - चाचियों  के दामादा ज़िंदाबद-ज़िंदाबाद !
उनके     अपने          माता - पिता का दामाद                 मुर्दाबाद- मुर्दाबाद-मुर्दाबाद ! !